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इन्द्र भुवन सँ चलल महादेव
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इन्द्र भुवन सँ चलल महादेव बैठी गेल गौरी के दुआरि यो
पैर धोऊ पाट करु ईस महादेव कहु शिव नैहर कुशल यो
एक त कुशल गौरा माय मैना रोवए दोसरे कुशल अज गुत यो
आए सरनियाँ तोहार हे जगतारन मैया
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आए सरनियाँ तोहार हे जगतारन मैया - 2
जगतारन मैया भवतारन मैया जगतारन मैया
आए सरनियाँ तोहार हे ....... |
लाल मंदिरिया हे लाल चौखटिया
लाल है झुनकी केबार के जगतारन मैया -2
आए सरनियाँ तोहार हे ....... |
लाल बदनियाँ मे लाल चुन्दरिया
मोरा रे अँगनमा चानन केर गछिया
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शारदा सिन्हा के गएल विद्यापति जीक गीत
मोरा रे अँगनमा चनन केर गछिया, ता चढ़ि कुररए काग रे।
सोने चोंच मढ़ाए देब बायस, जौं पिया आओत आजु रे। मोरा रे...
गावह सखि सब झूमर लोरी, मयन अराधन जाउं रे।
चहुं दिसि चम्पा मौली फूलली, चान इजोरिया राति रे। मोरा रे...
विद्यापति कवि गाओल तोहर, कहु अछि गुणक निधान रे।
राम भोगी सर सब गुण आगर, पदमा देवी रमाण रे। मोरा रे...
कइसे कए हमे मदन अराधव, होइति बड़ि रति साति रे।
पं० श्रीकृष्ण ठाकुर आ 'चन्द्रप्रभा'
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मैथिली कथा साहित्यक विकास, संस्कृतिक आख्यान, उपाख्यान अथवा आख्यायिकाक प्रभावें, वर्तमान उत्कर्ष धरि पहुंचल अछि। परंच, कथा विकासक मार्ग पर सर्वप्रथम कोन मैथिली सेवी अग्रसर भेलाह, तकर अनुसंधान कएलासँ प्रथम यात्रीक रूप मे पं० श्रीकृष्णा ठाकुरक नाम अबैछ तथा 'चन्द्रप्रभा' कें प्रथण रचना होएबाक सौभाग्य प्राप्त छैक।
पं० श्रीकृष्ण ठाकुरक जन्म सन् १२५७ साल (१७५० ई०) मे खण्डवलकुलमे भेल। ओ प्रकाण्ड तान्त्रिक, सर्वसीमा (लोहनारोड, मधुबनी) निवासी पं० महेश्वर ठाकुरक पुत्र तथा म० म० मणिनाथ ठाकुरक पौत्र छलाह। पं० श्रीकृष्ण ठाकुर आठ भाइ-बहीन छलाह। हिनक ज्येष्ठा सहोदराक विवाह म.म. कविवर हर्षनाथ झासँ छल।
मोहि लेलखिन सजनी मोर मनवा
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मोहि लेलखिन सजनी मोरा मनवा, पहुनवा राघव,
मोहि लेलखिन सजनी मोरा मनवा, पहुनवा राघव,
एहो पहुनवा राघव , सिया के सजनवा राघव ,
राजा दशरथ के दुलरुआ ,पहुनवा राघव,
मोहि लेलखिन सजनी मोरा मनवा, पहुनवा राघव,
अँखियन में कारी काजर, होठवां में पान के लाली,
अँखियन में कारी काजर, होठवां में पान के लाली,
लाले लाल सिर पर है पगड़िया, पहुनवा राघव,
मोहि लेलखिन सजनी मोरा मनवा, पहुनवा राघव
चलू चलू परिछन सखी है, दूल्हा चूमावन सखी है,
चलू चलू परिछन सखी है, दूल्हा चूमावन सखी है,
चम चम चमके है मउरिया, पहुनवा राघव
मोहि लेलखिन सजनी मोरा मनवा, पहुनवा राघव
बर रे जतन सं हम सिया धीया पोसलौं
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बर रे जतन सं हम, सिया धीया पोसलौं, सिया धीया पोसलौं
सेहो धीया राम लेने जाय, सेहो धीया राम नेने जाय
आगू-आगू राम चंद्र, पाछू-पाछू डोलिया, पाछू-पाछू डोलिया
तई पाछू लछमन रे भाई, सेहो धीया राम नेने जाय
एक कोस गेलौं रामा, दुई कोस गेलौं
तेसर कोस लगलई पियास
हाथ जोरू बैंयां परू, अगिला कहरिया से, अगिला कहरिया सं
बाबा दियौ पनिया पियाई, सेहो धीया राम लेने जाई
लिंगाष्टकम
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आदि शंकराचार्य रचित लिंगाष्टकम
ब्रह्ममुरारि सुरार्चित लिंगं
निर्मलभासित शोभित लिंगम् ।
जन्मज दुःख विनाशक लिंगं
तत्-प्रणमामि सदाशिव लिंगम् ॥ 1 ॥
देवमुनि प्रवरार्चित लिंगं
कामदहन करुणाकर लिंगम् ।
रावण दर्प विनाशन लिंगं
तत्-प्रणमामि सदाशिव लिंगम् ॥ 2 ॥
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