मैथिली कथा साहित्यक विकास, संस्कृतिक आख्यान, उपाख्यान अथवा आख्यायिकाक प्रभावें, वर्तमान उत्कर्ष धरि पहुंचल अछि। परंच, कथा विकासक मार्ग पर सर्वप्रथम कोन मैथिली सेवी अग्रसर भेलाह, तकर अनुसंधान कएलासँ प्रथम यात्रीक रूप मे पं० श्रीकृष्णा ठाकुरक नाम अबैछ तथा 'चन्द्रप्रभा' कें प्रथण रचना होएबाक सौभाग्य प्राप्त छैक।
पं० श्रीकृष्ण ठाकुरक जन्म सन्‌ १२५७ साल (१७५० ई०) मे खण्डवलकुलमे भेल। ओ प्रकाण्ड तान्त्रिक, सर्वसीमा (लोहनारोड, मधुबनी) निवासी पं० महेश्वर ठाकुरक पुत्र तथा म० म० मणिनाथ ठाकुरक पौत्र छलाह। पं० श्रीकृष्ण ठाकुर आठ भाइ-बहीन छलाह। हिनक ज्येष्ठा सहोदराक विवाह म.म. कविवर हर्षनाथ झासँ छल।


पं० श्रीकृष्ण ठाकुर देखबामे पिरश्याम छलाह। देह दोहरा एवं नमछर छल। शिक्षा-दीक्षा नदिया (बंगाल) मे भेल। तीन विवाह छलनि। पहिल विवाह भट्टपुरा छल। एहि पक्ष मे एक कन्या भेलथिन्ह। प्रथम पत्नीक देहावसानक उपरान्त दोसर विवाह शारदापुर कएल। द्वितीय पक्ष मे तीन बालक पं० उमाकान्त ठाकुर, पं० चन्द्रकान्त ठाकुर आ पं० गंगाकान्त ठाकुर। तेसर पक्षमे सन्तान नहि भेलनी। पं० ठाकुरक एक मात्र कन्या परमेश्वरी देवीक विवाह मांडर वंशावतंस, उजान ग्राम वास्तव्य पं० गिरिधारी झाक बालक 'शब्द प्रदीपकार' पं० हेमपति झा प्रसिद्ध 'विकल झा' सँ छल। मैथिलीक ख्यातनामा साहित्यकार ओ वैयाकरण पं० श्यामानन्द झा एवं कवियित्री मोदवती (हरिलता) हिनहि दोहित्र एवं दौहित्री छलथिन्ह। प्रो० गंगापति सिंह, पं० लक्ष्मीपति सिंह आदिक पं० श्रीकृष्ण ठाकुर आचार्यगुरु छलाह।
पं० श्रीकृष्ण ठाकुरक जीवन दुखमय छल। विचारसँ उदारवादी छलाह, अन्धविश्वासक विरोधी छलाह तथा ओकर विपक्षमे लेखनी चलैत छलाह। ओ सघिखन एहि चेष्टा मे रहैत छलाह जे समाज अपन कर्तव्याकर्त्तव्यसँ परिचित हो, स्त्री-समाजमे कर्त्तव्यशीलताक भाव जागृत हो तथा विद्धत्‌ समाज अपन सामाजिक तथा धार्मिक आचार-विचारक वैज्ञानिक महत्व जानबाक चेष्टा करथि। एहि लेल ओ निरन्तर प्रयत्नशील रहैत छलाह। हिनक एहि प्रयत्नक मठाधीश लोकनि विरोध करैत छलाह। अपमानित करबाक षड्यंत्र रचल जाइत छल। परंच, पं० श्रीकृष्ण ठाकुर निडर भए अपन विचार रखैत जाइत छलाह। लोकक धमकीसँ अप्रभावित रही अपन कर्त्तव्यपथ पर ओ अग्रसर होइत रहलाह। मुदा, एकटा विषय ध्यातव्य जे जीवन-यापन कंटकाकीर्ण रहितहु पं० ठाकुर लेखनीसँ विमुख कहियो नहि रहलाह। सन्‌ १३२९ साल (१९२२)मे कतेको अमरग्रंथक रचना कए पं० श्रीकृष्ण ठाकुर सुरपुरक शोभा बढ़ेबाक हेतु विदा भऽ गेलाह।
पं० श्रीकृष्ण ठाकुरक अमूल्य ग्रंथमे अछि-- (१) मिथिला तीर्थप्रकाश (मिथिला यन्त्रोद्धार सहित), (२) नारी धर्मप्रकाश (हिन्दी टीका सहित) (३) शूद्र विवाह पद्धति (हिन्दी भाषा टीका सहित) (४) वैतरणीदानम्‌ (पिण्डदान पर्यन्त भाषा टीका सहित) (५) गृहोत्सर्ग पद्धति (सटीक), (६) कुलदेवता स्थापना विधि (७) शुद्ध निर्णय, (८) सामा कथा, (९) गंगापत्तलकम्‌, (१०) ध्वजारोपण विधि एवं (११) शिवपूजा प्रदीपिका। एहि पोथीक अतिरिक्तो किछु अप्रकाशित पोथीक चर्चा अछि, जाहिमे प्रमुख अछि "माला विवेक'। मुदा जहिना कवि कोकिल विद्यापति कें हमरा लोकनि संस्कृत रचनाक आधारपर नहि, पदावलीक आधार पर विशेष रूपें जनैत छी, ओहिना पं० श्रीकृष्ण ठाकुर अपन मैथिली कथा संग्रह 'चन्द्रप्रभाक' हेतु मैथिली साहित्यमे पूज्य छथि।
'चन्द्रप्रभाक' प्रकाशन पं० श्रीकृष्ण ठाकुरक मुत्युपरान्त कतेको वर्षक वाद विक्रम सम्वत्‌ १९९६ (१९३९ ई०) मे भेल। सम्पादन पं० लक्ष्मीपति सिंह तथा पं० रघुनाथ प्रसाद मिश्र 'पुरोहित' आ मैथिली बन्धु कार्यालय, अजमेरसँ प्रकाशित कएल। प्रथम संस्करण ५०० प्रतिक छल तथा मूल्य छल एक आना। 'चन्द्रप्रभाक' पाण्डुलिपिक प्रसंग सम्पादक पं० लक्ष्मीपति सिंह लिखने छथि जे ई कथावस्तु लेखक महोदयक अमर साहित्यिक कृतिक किछु अंश मात्र कहल जा सकैछ। एकर पाण्डुलिपि बहुतो वर्ष पूर्व हमरा अपन पूज्यपाद पितृव्य प्रो० गंगापति सिंह (१८९४-१९६९) जी साहब सँ अत्यन्त जीर्ण-शीर्ण कागतपर लिखल प्राप्त भेल छल, जे समुचित समावेशक अभावे गतवर्ष धरि हमरा ओहिठाम अप्रकाशित पड़ल छल। 'चन्द्रप्रभाक' भाषा शैलीक आधारपर रचनाकालक प्रसंग लिखल अछि "कहबाक आवश्यकता नहि कि 'चन्दप्रभा' उन्नैसम शताब्दीक मैथिली गद्य रचनाक एक नमूने थिक"|
'चन्द्रप्रभाक' प्रकाशक पं० रघुनाथ मिश्र 'पुरोहित' एकर महत्वक प्रसंग लिखल अछि-"प्राचीन मैथिल विद्वान लोकनिक पद्यरचनाक अपेक्ष गद्य रचना बहुत कम प्राप्त होइछ, तें एहि कथामाला कें पुस्तकाकारहु प्रकाशित कए देब, प्राचीन साहित्योद्धारक दृष्टिमे अपन इष्ट कर्त्तव्य बुझना गेल। एकर अतिरिक्त 'चन्द्रप्रभाक' रचना कालक प्रसंग सेहो लिखल अछि--'चन्द्रप्रभा' आइसे (१९३९ ई० सँ) ६०-७० वर्ष पूर्वक लिखल अछि। तें एहिबात पर ध्यान राखिए "चन्द्रप्रभाक" वास्तविक महत्व बोधगम्य भऽ सकैछ। म.म.उमेश मिश्र (१८९५-१९६७) 'चन्द्रप्रभाक' उपादेयताक प्रसंग लिखल अछि--"एहिमे अनेक कथाक संग्रह अछि। ई सभ रोचक कथा शिक्षाप्रद अछि। ई ग्रंथ साहित्यिक होइतहुँ कथाक साहित्यिक लक्षण से आक्रान्त नहि अछि।
मैथिली कथाक विकासक दृष्टिएँ 'चन्द्रप्रभा' पहिल कथा संग्रह थिक। तथापि एकर प्रचार-प्रसार आ व्यापक अध्ययन नहि भऽ सकल। मिथिलाञ्चल वा मैथिलीक अध्ययन केन्द्रहु पर प्रकाशित पोथीक प्रचार-प्रसार जखन नहि भए पबैत अछि, तखन मिथिलाञ्चलसँ कोसो दूर प्रकाशित पोथीक प्रचार-प्रसार कोना भऽ पबैत?
डा० जयकान्त मिश्रक (जन्म १९ नवम्बर १९२२) परवर्त्ती इतिहासकार लोकनि "चन्द्रप्रभाक" नामक मुद्रणजन्य त्रुटिक परिमार्जन नहि कए सकैत गेलाह। ओहि पोथीक प्रसंग किछुओ लिंखब ते सर्वथा असम्भवे छल। एकर साफ मतलब भेल,'चन्द्रप्रभा' पाठक धरि नहि पहुँचि सकल।
'चन्द्रप्रभाक' आरम्भ एक श्लोक से होइछ आ तकर बाद कथाक स्त्रोत फूटि पड़ैछ। एक कथासँ दोसर कथा बाहर होइत जाइछ। मुदा सभ अपना मे एक दोसरासँ पृथक्‌ आ स्वतंत्र मुदा रूपमे साम्य अछि रोचकताक। चूँकि, गुरु आ शिष्यक संवाद कथा आरम्भ होइछ नें (प्रत्येक कथा शिक्षाप्रद अछि। आजुक दृष्टिसँ अलौकिक सेहो लगैछ। कथा सभ इतिवृत्तात्मक अछि। कथाकारक ध्यान चरित्र चित्रणसँँ बेसी महत्वपूर्ण घटनाक विवरण पर छनि। किछु शब्दक प्रयोग ओहि रूपमे अछि जे 'चन्द्रप्रभाक' लेखनशैलीकें गतशताब्दीक प्रमाणित करैछ। जेना लिखल अछि,'बिगड़ल प्रजा नहि साहित्य करइन्ह'| एहिठाम 'साहित्य' शब्दक प्रयोग सहयोग किंवा सहायताक अर्थमे अछि, ई प्रयोग वेश प्राचीन अछि।
"चन्द्रप्रभाक" प्रसंग डा० जयकान्त मिश्र लिखैत छथि - Shrikrishna Thakur's Chandraprabhaga is a small work in the old manner of tales found in Sanskrit collection of Fables. It begins with a Sanskrit verse which a princess is taught to understand with the help of several illustrative stories. These stories are imaginary, though they are substantially very much like the Romantic Maithili folk tales--
मैथिली कथाक विकास रेखा कें स्पष्ट करैत प्रो० आनन्द मिश्र (१९२६) लिखल अछि जे पंचतंत्रक शैली विद्यापतिक 'पुरुष परीक्षा' सँ होइत मैथिलीक प्रारम्भिक कथा शैली धरि आएल अछि। उदाहरण-प्रत्यूदाहरणसँ कोनो नीतिवचनक समर्थन एहि कथाशैलीक विशेषता थिक। एहि कोटिक कथा सभ उन्नैसम शताब्दीक अन्तिम चरणमे अबैत-अबैत लिखल जाए लागल। श्रीकृष्ण ठाकुरक 'चन्द्रप्रभा' (एकरा श्री जयकान्त बाबू 'चन्द्रभागा' लिखने छथि, परन्तु सत्य एहिस भिन्न अछि एवं एहि भ्रमक, कारणें आनो इतिहासक पोथीमे एहि भ्रमक लसरि लागल अछि) ओहि परम्पराक रचना थिक।

मैथिलीक पहिल कथासंग्रह 'चन्द्रप्रभाक' अध्ययन विश्लेषण, नीक जकाँ नहि कएल जा सकल अछि। एकर प्रमुख कारण थिक अनुपलब्धता। आजुक पाठक पुरनो वस्तु्के देखय चाहैत अछि। ओहि पर फेरसे विचार करए चाहैत अछि। आ से सब सर्वसुलभ भेले पर मैथिलीक आरम्भिक कथा आ गद्यपर विशेष प्रकाश पड़ि सकत।

मिथिला मिहिर १८ अगस्त १९८५

References:
Dr. JK Mishra- History of Maithili Literature vol.II
प्रो. आनन्द मिश्र - मैथिलीक आरम्भिक कथा(सं0- रमानंद झा रमण)